Amrita Pritam

Amrita Pritam
This blog explores the poetry of Amrita Pritam. All her original poems are in Punjabi. I've translated them in Hindi. The Hindi translations are relatively straight forward and there are other authors who have translated her work in Hindi. In some cases, where I could, I have translated a few of her poems in English. This is an entirely different task from Hindi translation. I have major reservations and a few misgivings about any attempt to translate poems in general. All of those concerns apply here in full force. I consider these translations as my musings and explorations: they carry no weight and are no substitute for experiencing the poetry in Punjabi. I am acutely aware of the challenges this may pose to even Hindi readers, let alone English ones. I offer no recourse.

Friday, November 23, 2018

कलम का भेत ਕਲਮ ਦਾ ਭੇਤ




छोड़ कर छायों को, राहों को चूमेंगे जो कोई
उस को हर कदम मेरा नज़र आता जाएगा

मान सच्चे इश्क़ का है, हुनर का दावा नहीं
कलम के इस भेत को कोई इल्म वाला पाएगा 



ਛੱਡ ਕੇ ਛਾਵਾਂ ਨੂੰ ਜੋ ਰਾਹਵਾਂ ਨੂੰ ਚੁੱਮੇਗਾਂ ਕੋਈ 

ਉਸ ਨੂੰ ਹਰ ਕਦਮ ਮੇਰਾ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦਾ ਜਾਏਗਾ ...

ਮਾਣ ਸੁੱਚੇ ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਹੈ, ਹੁਨਰ ਦਾ ਦਾਵਾ ਨਹੀਂ 

ਕਲਮ ਦੇ ਇਸ ਭੇਤ ਨੂੰ ਕੋਈ ਇਲਮ ਵਾਲਾ ਪਾਏਗਾ ...



[ਇਲਮ, इल्म - knowledge]


Chaḍa kē chāvāṁ nū jō rāhavāṁ nū cumēgāṁ kō'ī 
usa nū hara kadama mērā nazara ā'undā jā'ēgā...

Māṇa sucē iśaka dā hai, hunara dā dāvā nahīṁ 
kalama dē isa bhēta nū kō'ī ilama vālā pā'ēgā…


chhod kar chhaayon ko, raahon ko choomenge jo koee
us ko har kadam mera nazar aata jaega

maan sachche ishq ka hai, hunar ka daava nahin
kalam ke is bhet ko koee ilm vaala paega

Thursday, November 22, 2018

ख़ुश्बू Fragrance ਖੁਸ਼ਬੋ



ख़ुश्बू 

उमरों की यह चिठ्ठी भटकती 
किस्मत हमारी पढ़ न सकी 
मेरे दिल ने साजन का 
पता लिखा था जो 

इस वादी का क्या कहना
इश्क़ का बूटा जहाँ भी उगता 
मीलों तक आती रहती 
बिरहा की खुशबू  

Fragrance

Misplaced is the letter of my life
          for my fate could not recite
The address of my lover
          that my heart had ascribed 

Strange is the valley of love
          for wherever its seed is planted
The air is fragrant for miles 
          with the pain of lovers separated 



 ਖੁਸ਼ਬੋ 


ਉਮਰਾਂ ਦੀ ਇਹ ਚਿੱਠੀ ਰੁਲਦੀ 
ਕਿਸਮਤ ਸਾਡੀ ਪੜ ਨਾ ਸੱਕੀ 
ਸਾਡੇ ਦਿਲ ਨੇ ਸੱਜਣਾ ਦਾ 
ਸਰਨਾਵਾਂ ਲਿਖਿਆ ਜੋ...

ਇਸ ਵਾਦੀ ਨੂੰ ਕੀ ਕੁਝ ਕਹੀਏ 
ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਬੂਟਾ ਜਿੱਥੇ ਉੱਗਦਾ 
ਮੀਲਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਆਓਂਦੀ ਰਹਿੰਦੀ 
ਬਿਰਹਾ ਦੀ ਖੁਸ਼ਬੋ 


From poem: ख़ुश्बू  

कुफ्र Sacrilege ਕੁਫ਼ਰ





कुफ्र

आज हमने एक दुनिया बेची
और एक दीन खरीद लाये
बात कुफ्र की कर ली

[दीन - faith
कुफ्र - sacrilege]

सपनों का एक थान बुनवाया
गज़ भर कपडा फ़ाड़ लिया
उम्र की चोली सी ली

आज हमने अम्बर के घड़े से
बादल की एक गड़वी उतारी
घूँट चाँदनी पी ली

गीतों साथ चुका जाएँगे
यह जो हमने मौत से
घड़ियाँ उधार ले लीं 


Sacrilege


Today
          I sold my world
          to buy a faith:
          talk of sacrilege!

I wove a bolt of dreams
          and tore off a yard
          to stitch
          the blouse of my life

I took off the lid
          from the bowl of sky
          to drink
          a sip of moonlight

I shall repay 

          with my songs this debt
          of all the moments
          I borrowed from death



ਕੁਫ਼ਰ

ਅੱਜ ਅਸਾਂ ਇਕ ਦੁਨੀਆਂ ਵਚੀ
ਤੇ ਇਕ ਦੀਨ ਵਿਹਾਜ ਲਿਆਏ
ਗੱਲ ਕੁਫ਼ਰ ਦੀ ਕੀਤੀ

ਸੁਪਨੇ ਦਾ ਇਕ ਥਾਨ ਉਣਾਇਆ
ਗਜ਼ ਕੁ ਕੱਪੜਾ ਪਾੜ ਲਿਆ
ਤੇ ਉਮਰ ਦੀ ਚੋਲੀ ਸੀਤੀ

ਅੱਜ ਅਸਾਂ ਅੰਬਰ ਦੇ ਘੜਿਓਂ
ਬੱਦਲ ਦੀ ਇਕ ਚੱਪਣੀ ਲਾਹੀ
ਘੁੱਟ ਚਾਨਣੀ ਪੀਤੀ

ਗੀਤਾਂ ਨਾਲ ਚੁਕਾ ਜਾਵਾਂਗੇ
ਇਹ ਜੋ ਅਸਾਂ ਮੌਤ ਦੋ ਕੋਲੋਂ
ਘੜੀ ਹੁਦਾਰੀ ਲੀਤੀ


Wednesday, November 21, 2018

अक्षर Words ਅੱਖਰ

Words अक्षर ਅੱਖਰ

Annotation and Commentary


Once when Amrita was asked by a journalist about her life, she simply said: read my poem Words [अक्षर ਅੱਖਰ], and you'll find my life story there. She considered it her most autobiographical of poems. As a poet, Amrita had special reverence for the written word. In this poem, she uses the metaphor of fire in both its destructive and creative forms. She starts her life journey often doubting the power of her imagination [fire] until she comes to see this as a force that creates words: words that are a sacred gift that she must pass onto others. 

My special thanks to Ajit Singh for providing guidance on the nuances of several Punjabi words and expressions. 

1.

एक पत्थरों का नगर था

सूरज वंश के पत्थर और चन्द्र वंश के पत्थर

उस नगर में रहते थे

और कहते हैं -


जुल्मी राजाओं का राज था

ना राजाओं के कान थे

ना प्रजा की आवाज़ थी

इसीलिए -

वो लोग जब रोए थे

पत्थरों के हो गए थे


2

पत्थर के देवता, पत्थर के पुजारी

और ना कोई अंग छूता

और ना ही बिरहा भंग होता

और पत्थरों के नगर में, सूरज का घोड़ा हिनहिनाता

पत्थरों पे पैर पटकता

बादलों के हाथी चिंघाड़ते, पत्थरों को पैरों से उखाड़तें

रातों का अँधेरा फुंकारता, पत्थरों को कुंडली मारता

और उपर से राजाओं का हुक्म: दफा एक सौ चौन्तालिस


[दफा एक सौ चौन्तालिस - law prohibiting gathering of people]



3

और पत्थर सहम के बैठते, जब दिल की गुठ में

तो छाती में हरकत की तरह, कोई पीला फूल, पत्ता

यां हरी घास का तीला, एक पत्थर से ऐसे फूटे

जैसे काँप के एक ऋषि की तपस्या टूटे


ज़िन्दगी बुझती और जगती थी

और यूँ - पत्थरों के नगर में

पत्थरों की वंश बढ़ती थी


4

एक थी शिला, और एक था पत्थर

और उनका उस नगर में संयोग लिखा था

और उन्होंने मिल कर एक वर्जित फल चखा था


मैं अब भी बैठूं तो एक ख्याल आता है

कि मैं अगर होती एक हरी पत्ती

उनके बदन की सांस, एक नन्ही कोपल

तो उनकी छाती मुझे नसीब होती



5

सूरज का घोड़ा हिनहिनाता, बादलों के हाथी चिंघाड़ते

और रातों के सांप और राजाओं के हुक्म फुंकारते

पर उन की आड़ में मैं स्थिर बैठ जाती

और किसी ममता की दरार में छुपी रहती


पर वह शायद चकमाक पत्थर थे

जो मैले आसमान तले, मैली धरती पे 

एक पत्थरों की सेज पर सोए

और पत्थरों की रगड़ से

मैं आग सी जन्मी, आग की रुत में


6

बदन से आग जन्मी, तो पत्थर भी कांपा

- और शिला भी कांपी


फिर बदन की आग उन्होंने झोली में डाली

और धुंए की गुट्टी आग को चटाई

हंसी तो हंसी, एक पवनों की दाई

रोई तो रोई, जिसने कोख में जमाई:

"पत्थरों की झोली में आग ना खेले

पत्थरों के दुख होते पत्थरों जितने 

पत्थरों की जीभ पर पड़ें पत्थरों के छाले

हम धरती के हवाले, तू पवनों के हवाले"


7

फिर एक सन्नाटा -

उन्होंने कुछ ना कहा

आँखें मींचने से पहले शायद यह भी ना देखा

कि एक जनमती आग ने एक लंबी आह भरी


आग के होंठों पे लिखी एक लंबी सी आह

और आग की हड्डियों में भरा धुआं ही धुआं


यह बहती हवाएं मुझे जहाँ भी ले जातीं

गर्म गर्म राख मेरे बदन से झड़तीं

और रोज़ मेरी उम्र का जो भी दिन चड़ता

मैं उसे अंग लगाती, और वह राख़ हो जाता


8

मैं सोचती --

क्या धुंए की लकीर-सी माथे की लकीर कांपती है?

क्या माँ की कोख से चिता की आग जनमती है?

मैं चिता की आग में जलती

और चिता की आग सी जलती

पर - नींद का अन्धेरा इस तरह होता

कि सपनों की एक नीली लपट सी निकलती


और लगता -

कि चिता की आग, आग का अपमान है

किसी सोहनी, सस्सी और हीर में जो आग थी

मुझे उस आग की पहचान है

और एक ख्याल आता

कि सिर्फ मरघट की आग, आग नहीं होती

यह आग की तौहीन है


और लगता -

कि पत्थरों के नगर में

जो "वारिस" ने आग लगाई थी

यह मेरी आग भी, उसी की जां-नशीन है

आग, आग की वारिस


["वारिस" - reference to Waris Shah Poet 

वारिस - heir 

जां-नशीन - descendant]


9

पर पत्थरों की नगरी, कोई आग ना पाले

छातियों के चुहले, कोई आग ना जलाये

माथों की भट्टी पर, कोई आग ना सेके

और मेरी जीभ पर उठे, उस आग के छाले


10

वह पत्थरों के नगर वाले

कहते तो कहते -इस आग को बुझाओ

डालो, डालो, किसी नाली में डालो

दो, दो, नाख़ून गले में दे दो

जाओ, ले जाओ, इसे नदी में बहाओ


एक पत्थरों का नगर था पत्थरों के किनारे

पर कोख़ की आग का कोई सेंक ना बाँटे


11

फिर वही हवा - जिसने झोली में खिलाया

और जिसने मेरी माँ की - माँ की, माँ को जनमा

कहीं से दौड़ कर आयी

और हाथों में कुछ अक्षर ले आयी


"इन्हें छोटी कालीं रेखाएं ना जानना

यह रेखाओं के गुच्छे, तेरी आग के साथी

देख! अक्षरों में होता, आग का साहस

आग का साहस, है आग से बड़कर"


और यह कहती वह गुज़र गयी आगे

"तेरी आग की उमर इन अक्षरों को लागे"




1

There was a city of stones

          where lived the dynasties 

          of Sun and Moon

And it is said -


Tyrants who ruled the land

          had no ears

And their subjects 

          had no voice

So when the people shed tears

          they turned to stone


2

Their gods were made of stone

          their priests too

So there was 

          no blissful union

          and no end 

          to the separation 

          among the stones


In this city of stones…


The sun horse would neigh

          and stamp its hooves on

          the cobblestones

The cloud elephants would trumpet

          and overturn with their feet

          the cobblestones

The darkness of the night would hiss

          and coil around 

          the cobblestones

While the law of the tyrants

          forbade any 

          gathering of the stones


3

When the stones huddled

          in the corner of a heart

          a  trembling desire

          would well up

As a yellow flower

          or a blade of green grass

          sprouts from a stone

As a hermit 

          startles awake

          shivering from a trance


Life flickered off and on

          and thus grew

          the lineage of stones 

          in the city of stones


4

There was once a slab, and a stone

          destined to meet in that city

          who together tasted 

          the forbidden fruit


Even now I wonder

          if I had been a green leaf

          a breath of their body

          a tender shoot

Their breasts could have been my destiny


5

The sun horse would have neighed

          the cloud elephants 

          would have trumpeted

          the serpents of the night 

          would have hissed

          the laws of the tyrants 

But I would have sit still

          hidden in their loving folds


Perhaps these stones were flint

          who under the sullied sky 

          and above the soiled earth 

Sleeping on a bed of stones

          rubbed against each other

And thus I was born of fire

          in the season of fire


6

When the fire was born from their body

          the stone trembled, and

          the slab trembled too


Then they took their body’s fire in the lap

And gave the newborn

          a fleck of smoke 

          as its first lick

When it laughed

          the midwife 

          breeze, laughed 

When it cried

          the one who carried it 

          in her womb, cried


“Fire does not play in the lap of stones

          the plight of stones is as old as stones

          the tongues of stones get blisters of stones

We belong to the earth

          you belong to the winds”


7

Then there was a silence;

          no one said anything

          and as they shut their eyes

          they did not even see

The newborn fire 

          let out a flame;

          on the lips of fire 

          was written a sigh;

          in the bones of fire 

          was nothing but smoke 


Wherever the flowing breeze took me

          my body shed 

          hot ashes 

Every day of my life

          that I embraced

          turned to ashes


8

I wondered

          does the line of my forehead 

          quiver like a line of smoke?

          are the flames of funeral pyre

          born of a mother’s womb?


I burned in the funeral pyre

I burned like the funeral fire 

          but sometime 

          in the dark of my sleep

          would flicker 

          a blue flame of dreams


I thought

          the fire of a funeral pyre

          is an insult to the fire;

          the fire that burns within lovers

          like Sassi, Punnu and Heer

          I recognize that fire;

          the funeral fire 

          is not the only fire 


The fire that Waris lit 

          in the city of stones

          my fire is an heir

          to that fire  

Fire bequeathed by fire


9

But in the city of stones

          no one tends to the fire

In the hearth of our bosoms

          no one lights the fire

In the kiln of our minds

          no one warms the fire

And my tongue gets blisters 

          from their fire


10

Those who lived in the city of stones

Said only this:

          put out this fire

          bury it in the cellar

          choke it, claw it

          and drown it in the river


So in the city full of stones 

          by a stone bank

          there was no one 

          to share with

          the fire burning 

          in the womb


11

Then the same breeze

          that had raised me in her lap

          who had born my mother

          her mother 

          - and her mother too -

          came running from nowhere

          with a bundle of words in her hands


“Don’t think of these as mere lines of black

          these bundles of words 

          are peers to your flame

Look! the words have the daring of fire

          and the daring of fire 

          is bigger than the fire”


Saying this she went her way

          with the blessing

“May the life of your fire 

          be added to your words”



1

ਇਕ ਪੱਥਰਾਂ ਦਾ ਨਗਰ ਸੀ -

ਸੂਰਜ ਵੰਸ਼ ਦੇ ਪੱਥਰ ਤੇ ਚੰਦਰ ਵੰਸ਼ ਦੇ ਪੱਥਰ

ਉਸ ਨਗਰ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ...

ਤੇ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ --


ਕਿ ਜ਼ੁਲਮੀ ਰਾਜਿਆਂ ਦਾ ਰਾਜ ਸੀ

ਨਾ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਕੰਨ ਸਨ, ਨਾ ਪਰਜਾ ਦੀ 'ਵਾਜ ਸੀ

ਤੇ ਤਾਹਿਓਂ - ਓਹ ਲੋਗ ਜਦ ਰੋਏ ਸਨ

ਪੱਥਰ ਦੇ ਹੋਏ ਸਨ...


2

ਪੱਥਰ ਦੇ ਦੇਵਤਾ, ਪੱਥਰ ਦੇ ਪੁਜਾਰੀ

ਤੇ ਵਸਲ ਅੰਗ ਨਾ ਛੋੰਦਾ

ਤੇ ਬਿਰਹਾ ਭੰਗ ਨਾ ਹੁੰਦਾ ...


ਤੇ ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਨਗਰ ਵਿਚ, ਸੂਰਜ ਦਾ ਘੋੜਾ ਹੀਣ ਕਦਾ

ਪੱਥਰਾਂ ਤੇ ਪੈਰ ਪਟਕਦਾ

ਬੱਦਲਾਂ ਦੇ ਹਾਥੀ ਚਿੰਗਾੜਦੇ, ਪੱਥਰਾਂ ਨੂੰ ਪੈਰੋਂ ਉਖਾੜਦੇ

ਰੰਤਾਂ ਦਾ ਹਨੇਰਾ ਸ਼ੂਕਦਾ, ਪੱਥਰਾਂ ਤੇ ਕੁੰਡਲੀ ਮਾਰਦਾ

ਤੇ ਉੱਤੋਂ ਹਾਕਮਾਂ ਦੇ ਹੁਕਮ, ਦਫ਼ਾ ਇਕ ਸੌ ਚੁੰਤਾਲੀ ...


3

ਤੇ ਪੱਥਰ ਸਹਿਮ ਕੇ ਬਹਿੰਦੇ, ਜਦ ਦਿੱਲਾਂ ਦੀ ਗ੍ਗੁਠੇ

ਤਾਂ ਛਾਤੀ ਤੇ ਹਰਖ ਵਾਂਗੂੰ , ਕੋਈ ਪੀਲਾ ਫੁਲ ਪੱਤਰ

ਜਾਂ ਸਾਵੇ ਘਾਹ ਦਾ ਤੀਲਾ, ਇਕ ਪੱਥਰ 'ਚੋਂ ਫੁੱਟੇ

ਜਿਉਂ ਕੰਬ ਕੇ ਇਕ ਰਿਖੀ ਦੀ ਤੱਪਸਿਆ ਟੁੱਟੇ ...


ਜਿੰਦ ਬੁਝਦੀ ਤੇ ਜਗਦੀ ਸੀ

ਤੇ ਇੰਜ - ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਨਗਰ ਵਿਚ

ਪੱਥਰਾਂ ਦੀ ਵੰਸ਼ ਵਧਦੀ ਸੀ...

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4

ਇਕ ਸੀ ਸ਼ਿਲਾ, ਤੇ ਇਕ ਸੀ ਪੱਥਰ

ਤੇ ਓਨਾਂ ਦਾ ਉਸ ਨਗਰ ਵਿਚ, ਸੰਜੋਗ ਲਿਖਿਆ ਸੀ,

ਤੇ ਉੰਨਾਂ ਨੇ ਰਲ ਕੇ, ਇਕ ਵਰਜਤ ਫਲ ਚਖਿਆਂ ਸੀ...


ਮੈਂ ਹਾਲੇ ਵੀ ਬੈਠਾਂ, ਤਾਂ ਇਕ ਖਿਆਲ ਔਂਦਾ ਹੈ

ਕਿ ਮੈਂ ਵੀ ਜੇ ਹੁੰਦੀ ਇਕ ਹਰੀ ਪੱਤੀ

ਉਨ੍ਨਾ ਦੇ ਪਿੰਡੇ ਦਾ ਹਉਕਾ - ਇਕ ਸਾਵੀ ਕਰੂੰਬਲ

ਤਾਂ ਉਨ੍ਨਾ ਦੀ ਛਾਤੀ ਮੈਨੂ ਨਸੀਬ ਹੁੰਦੀ,


5

ਸੂਰਜ ਦਾ ਘੋੜਾ ਹੀਣਕਦਾ, ਬੱਦਲਾਂ ਦੇ ਹਾਥੀ ਚਿੰਗਾੜਦੇ

ਤੇ ਰਾਤਾਂ ਦੇ ਸੱਪ ਤੇ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਹੁਕਮ ਸ਼ੂਂਕਦੇ

ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਓਹਲੇ , ਮੈਂ ਨਿੱਸਲ ਬੈਠ ਜਾਂਦੀ,

ਤੇ ਕਿਸੇ ਮਮਤਾ ਦੀ ਤ੍ਰੇਰ੍ਡ ਵਿਚ ਲੁੱਕੀ ਰਹਿਂਦੀ


ਪਰ ਓਹ ਖੌਰੇ ਚਕਮਾਕ ਪਥਰ ਸਨ

ਜੋ ਮੈਲੇ ਅਸਮਾਨ ਦੇ ਹੇਠ੍ਹਾਂ, ਤੇ ਮੈਲੀ ਧਰਤ ਤੇ ਉੱਤੇ,

ਇਕ ਪਥਰਾਂ ਦੀ ਸੇਜ ਤੇ ਸੁੱਤੇ

ਤੇ ਪਥਰਾਂ ਦੀ ਰਗੜ ਵਿਚੋਂ

ਮੈਂ ਅੱਗ ਵਾਂਗ ਜੰਮੀ - ਅੱਗ ਦੀ ਰੁੱਤੇ


-----


6

ਪਿੰਡੇ 'ਚੋਂ ਅੱਗ ਜੰਮੀ

ਤਾਂ ਪਥਰ ਵੀ ਕੰਬਿਆ ਤੇ ਸਿਲਾ ਵੀ ਕੰਬੀ


ਫੇਰ ਪਿੰਡ ਦੀ ਅੱਗ, ਉੰਨਾਂ ਝੋਲੀ ਵਿਚ ਪਾਈ

ਤੇ ਧੁਏਂ ਦੀ ਗੁੜਤੀ, ਅੱਗ ਨੂ ਚਟਾਈ

ਹੱਸੇ ਤਾ ਹੱਸੇ, ਇਕ ਪੌਣਾਂ ਦੀ ਦਾਈ

ਰੋਵੇਂ ਤਾ ਰੋਵੇਂ, ਜਿਹਨੇ ਕੁਖ ਵਿਚੋਂ ਜਾਈ

"ਪਥਰਾਂ ਦੀ ਝੋਲੀ ਅੱਗ ਨਾ ਖੇਡੇ

ਪਥਰਾਂ ਦੇ ਦੁਖ਼ ਹੁੰਦੇ ਪਥਰਾਂ ਜੇਡੇ

ਪਥਰਾਂ ਦੀ ਜੀਭੇ ਪਥਰਾਂ ਦੇ ਛਾਲੇ

ਅਸੀ ਧਰਤੀ ਦੇ ਹਵਾਲੇ, ਤੂੰ ਪੌਣਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ। .."



7

ਫੇਰ ਸੁੰਨ ਦਾ ਆਲਮ, 

ਤੇ ਉੰਨਾ ਕੁਝ ਨਾ ਆਖਿਆ

ਅੰਖੀਆਂ ਮੀਟਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ, ਸ਼ਾਇਦ ਇਹ ਵੀ ਨਾ ਵੇਖਿਆ

ਇਕ ਜਮਦੀ ਅੱਗ ਨੇ, ਇਕ ਲੰਬਾ ਦਾ ਹਉਕਾ ਲਿਆ। ..

....

ਅੱਗ ਦੇ ਹੋਂਠਾਂ ਤੇ ਲਿਖਿਆ, ਇਕ ਲੰਬਾ ਜਿਹਾ ਹਉਕਾ 

ਤੇ ਅੱਗ ਦੇ ਹੱਡਾਂ 'ਚ ਹੁੰਦਾ ਇਕ ਧੂਆਂ ਹੀ ਧੂਆਂ

---

ਇਹ ਵਗਦੀਆਂ ਪੌਣਾਂ, ਮੈਨੂੰ ਜਿਥੇ ਵੀ ਖੜਦੀਆਂ

ਤੱਤੀਆਂ ਸੁਆਹਵਾਂ, ਮੇਰੇ ਪਿੰਡੇ ਤੋਂ ਝੜਦੀਆਂ। ...

ਤੇ ਰੋਜ਼ ਮੇਰੀ ਉਮਰ ਦਾ, ਜਿਹੜਾ ਹੀ ਦਿਹੁੰ ਚੜਦਾ

ਮੈਂ ਉਸਨੂੰ ਅੱਗ ਲਾਂਦੀ, ਤਾਂ ਉਹੀਓਂ ਰਾਖ ਹੁੰਦਾ। ...



8

ਮੈਂ ਸੋਚਦੀ -

ਕੀ ਧੂਏਂ ਦੀ ਲੀਕ ਵਾਂਗੂ, ਮੱਥੇ ਦੀ ਲੀਕ ਕੰਬਦੀ ਹੈ?

ਕੀ ਸਾਵਾਂ ਦੀ ਕੁੱਖ ਵਿਚੋਂ, ਸਿਵਿਆਂ ਦੀ ਅੱਗ ਜੰਮਦੀ ਹੈ ...

---

ਮੈਂ ਸਿਵਿਆਂ ਦੀ ਅੱਗ ਵਿਚ ਜਲਦੀ

ਤੇ ਸਿਵਿਆਂ ਦੀ ਅੱਗ ਵਾੰਗ ਬਲਦੀ

ਪਰ - ਨੀਂਦਰ ਦਾ ਹਨੇਰਾ ਇਸ ਤਰਾਂ ਹੁੰਦਾ

ਕਿ ਸੁਪਨਿਆਂ ਦੀ ਨੀਲੀ, ਇਕ ਲਾਟ ਜਿਹੀ ਨਿਕਲਦੀ


ਤੇ ਜਾਪਦਾ -

ਕਿ ਸਿਵਿਆਂ ਦੀ ਅੱਗ, ਅੱਗ ਦਾ ਅਪਮਾਨ ਹੈ

ਤੇ ਕਿਸੇ ਸੋਹਣੀ ਜਾਂ ਸੱਸੀ, ਜਾਂ ਹੀਰ ਵਿਚ ਜੋ ਅੱਗ ਸੀ

ਮੈਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਹੈ ...

ਤੇ ਇਕ ਸੋਚ ਜਿਹੀ ਆਉਂਦੀ

ਕਿ ਸਿਰਫ ਮੜੀਆਂ ਦੀ ਅੱਗ, ਅੱਗ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ

ਇਹ ਅੱਗ ਦੀ ਤੌਹੀਨ ਹੈ


ਤੇ ਜਾਪਦਾ -

ਕਿ ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਨਗਰ ਵਿੱਚ

ਜੋ ਵਾਰਿਸ ਨੇ ਅੱਗ ਬਾਲੀ ਸੀ

ਇਹ ਮੇਰੀ ਅੱਗ ਵੀ, ਉਸੇ ਦੀ ਜਾ-ਨਸ਼ੀਨ ਹੈ

ਅੱਗ, ਅੱਗ ਦੀ ਵਾਰਿਸ


9

ਪਰ ਪੱਥਰਾਂ ਦੀ ਨਗਰੀ, ਕੋਈ ਅੱਗ ਨਾ ਪਾਲੇ

ਛਾਤੀਆਂ ਦੇ ਚੁੱਲ੍ਹੇ, ਕੋਈ ਅੱਗ ਨਾ ਬਾਲੇ

ਮੱਥਿਆਂ ਦੀ ਭੱਠੀ, ਕੋਈ ਅੱਗ ਨਾ ਸੇਕੇ

ਤੇ ਮੇਰੀ ਜੀਭ ਤੇ ਉੱਠੇ, ਉਸ ਅੱਗ ਦੇ ਛਾਲੇ

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10

ਉਹ ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਨਗਰ ਵਾਲੇ -

ਆਹਂਦੇ ਤੇ ਆਹਂਦੇ, ਇਸ ਅੱਗ ਨੂੰ ਬੁਝਾਓਂ

ਪਾਵੋ ਤੇ ਪਾਵੋ, ਕਿਸੇ ਭੋਰੇ ਵਿਚ ਪਾਵੋ

ਦੇਵੋ ਤੇ ਦੇਵੋ, ਨਹੂੰ ਸੰਘੀ ਵਿਚ ਦੇਵੋ

ਜਾਵੋਂ ਤੇ ਜਾਵੋ, ਇਹਨੂੰ ਨਦੀਏ ਰੁੜਾਓ ...

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ਇਕ ਪੱਥਰਾਂ ਦਾ ਨਗਰ ਸੀ, ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਕੰਢੇ,

ਤੇ ਮਾਂ-ਵਾਰਹੀ ਅੱਗ ਦਾ, ਕੋਈ ਸੇਕ ਨਾ ਵੰਡੇ ....

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11

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ਫੇਰ ਉਹੀਓ ਹਵਾ - ਜਿਹਨੇ ਝੋਲੀ 'ਚ ਖਿਡਾਇਆ

ਤੇ ਜਿਹਨੇ ਮੇਰੀ ਮਾਂ ਦੀ - ਮਾਂ ਦੀ, ਮਾਂ ਨੂੰ ਜਾਇਆ

ਕਿਤੋਂ ਦੌੜ ਕੇ ਆਈ

ਤੇ ਹੱਥਾਂ ਦੇ ਵਿਚ, ਕੁਝ ਅੱਖਰ ਲਿਆਈ


"ਇਹ ਨਿੱਕਿਆ ਕਾਲੀਆਂ, ਲੀਕਾਂ ਨਾ ਜਾਣੀ

ਇਹ ਲੀਕਾਂ ਦੇ ਗੁੱਛੇ, ਤੇਰੀ ਅੱਗ ਦੇ ਹਾਣੀ

ਵੇਖ! ਅੱਖਰਾਂ ਦਾ ਹੁੰਦਾ, ਅੱਗ ਦਾ ਜੇਰਾ

ਅੱਗ ਦਾ ਜੇਰਾ - ਅੱਗ ਤੋਂ ਵਡੇਰਾ"


ਤੇ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਹਿੰਦੀ, ਉਹ ਲੰਘ ਗਈ ਅੱਗੇ

"ਤੇਰੇ ਅੱਗ ਦੀ ਉਮਰਾਂ - ਇੰਨ੍ਹਾਂ ਅੱਖਰਾਂ ਨੂੰ ਲੱਗੇ " 



Akhar 1 Ika patharāṁ dā nagara sī - sūraja vaśa dē pathara tē cadara vaśa dē pathara usa nagara vica rahidē sana... Tē kahidē hana -- ki zulamī rāji'āṁ dā rāja sī nā rāji'āṁ dē kana sana, nā parajā dī'vāja sī tē tāhi'ōṁ - ōha lōga jada rō'ē sana pathara dē hō'ē sana... 2 Pathara dē dēvatā, pathara dē pujārī tē vasala aga nā chōdā tē birahā bhaga nā hudā... Tē patharāṁ dē nagara vica, sūraja dā ghōṛā hīṇa kadā patharāṁ tē paira paṭakadā badalāṁ dē hāthī cigāṛadē, patharāṁ nū pairōṁ ukhāṛadē ratāṁ dā hanērā śūkadā, patharāṁ tē kuḍalī māradā tē utōṁ hākamāṁ dē hukama, dafā ika sau cutālī... 3 Tē pathara sahima kē bahidē, jada dilāṁ dī gguṭhē tāṁ chātī tē harakha vāṅgū, kō'ī pīlā phula patara jāṁ sāvē ghāha dā tīlā, ika pathara'cōṁ phuṭē ji'uṁ kaba kē ika rikhī dī tapasi'ā ṭuṭē... Jida bujhadī tē jagadī sī tē ija - patharāṁ dē nagara vica patharāṁ dī vaśa vadhadī sī... ---- 4 Ika sī śilā, tē ika sī pathara tē ōnāṁ dā usa nagara vica, sajōga likhi'ā sī, tē unāṁ nē rala kē, ika varajata phala cakhi'āṁ sī... Maiṁ hālē vī baiṭhāṁ, tāṁ ika khi'āla aundā hai ki maiṁ vī jē hudī ika harī patī unnā dē piḍē dā ha'ukā - ika sāvī karūbala tāṁ unnā dī chātī mainū nasība hudī, 5 sūraja dā ghōṛā hīṇakadā, badalāṁ dē hāthī cigāṛadē tē rātāṁ dē sapa tē rāji'āṁ dē hukama śūṅkadē para unhāṁ dē ōhalē, maiṁ nisala baiṭha jāndī, tē kisē mamatā dī trērḍa vica lukī rahindī para ōha khaurē cakamāka pathara sana jō mailē asamāna dē hēṭhhāṁ, tē mailī dharata tē utē, ika patharāṁ dī sēja tē sutē tē patharāṁ dī ragaṛa vicōṁ maiṁ aga vāṅga jamī - aga dī rutē ----- 6 piḍē'cōṁ aga jamī tāṁ pathara vī kabi'ā tē silā vī kabī phēra piḍa dī aga, unāṁ jhōlī vica pā'ī tē dhu'ēṁ dī guṛatī, aga nū caṭā'ī hasē tā hasē, ika pauṇāṁ dī dā'ī rōvēṁ tā rōvēṁ, jihanē kukha vicōṁ jā'ī "patharāṁ dī jhōlī aga nā khēḍē patharāṁ dē duḵẖa hudē patharāṁ jēḍē patharāṁ dī jībhē patharāṁ dē chālē asī dharatī dē havālē, tū pauṇāṁ dē havālē. .." 7 Phēra suna dā ālama, tē unā kujha nā ākhi'ā akhī'āṁ mīṭana tōṁ pahilāṁ, śā'ida iha vī nā vēkhi'ā ika jamadī aga nē, ika labā dā ha'ukā li'ā. .. .... Aga dē hōṇṭhāṁ tē likhi'ā, ika labā jihā ha'ukā tē aga dē haḍāṁ'ca hudā ika dhū'āṁ hī dhū'āṁ --- iha vagadī'āṁ pauṇāṁ, mainū jithē vī khaṛadī'āṁ tatī'āṁ su'āhavāṁ, mērē piḍē tōṁ jhaṛadī'āṁ. ... Tē rōza mērī umara dā, jihaṛā hī dihu caṛadā maiṁ usanū aga lāndī, tāṁ uhī'ōṁ rākha hudā. ... 8 Maiṁ sōcadī - kī dhū'ēṁ dī līka vāṅgū, mathē dī līka kabadī hai? Kī sāvāṁ dī kukha vicōṁ, sivi'āṁ dī aga jamadī hai... --- Maiṁ sivi'āṁ dī aga vica jaladī tē sivi'āṁ dī aga vāga baladī para - nīndara dā hanērā isa tarāṁ hudā ki supani'āṁ dī nīlī, ika lāṭa jihī nikaladī tē jāpadā - ki sivi'āṁ dī aga, aga dā apamāna hai tē kisē sōhaṇī jāṁ sasī, jāṁ hīra vica jō aga sī mainū usa dī pahicāṇa hai... Tē ika sōca jihī ā'undī ki sirapha maṛī'āṁ dī aga, aga nahīṁ hudī iha aga dī tauhīna hai tē jāpadā - ki patharāṁ dē nagara vica jō vārisa nē aga bālī sī iha mērī aga vī, usē dī jā-naśīna hai aga, aga dī vārisa 9 para patharāṁ dī nagarī, kō'ī aga nā pālē chātī'āṁ dē cul'hē, kō'ī aga nā bālē mathi'āṁ dī bhaṭhī, kō'ī aga nā sēkē tē mērī jībha tē uṭhē, usa aga dē chālē ---- ---- 10 uha patharāṁ dē nagara vālē - āhandē tē āhandē, isa aga nū bujhā'ōṁ pāvō tē pāvō, kisē bhōrē vica pāvō dēvō tē dēvō, nahū saghī vica dēvō jāvōṁ tē jāvō, ihanū nadī'ē ruṛā'ō... ---- Ika patharāṁ dā nagara sī, patharāṁ dē kaḍhē, tē māṁ-vārahī aga dā, kō'ī sēka nā vaḍē.... --- 11 --- --- Phēra uhī'ō havā - jihanē jhōlī'ca khiḍā'i'ā tē jihanē mērī māṁ dī - māṁ dī, māṁ nū jā'i'ā kitōṁ dauṛa kē ā'ī tē hathāṁ dē vica, kujha akhara li'ā'ī "iha niki'ā kālī'āṁ, līkāṁ nā jāṇī iha līkāṁ dē guchē, tērī aga dē hāṇī vēkha! Akharāṁ dā hudā, aga dā jērā aga dā jērā - aga tōṁ vaḍērā" tē isa tar'hāṁ kahidī, uha lagha ga'ī agē "tērē aga dī umarāṁ - inhāṁ akharāṁ nū lagē" Akshar 1. ek pattharon ka nagar tha sooraj vansh ke patthar aur chandr vansh ke patthar us nagar mein rahate the aur kahate hain - julmee raajaon ka raaj tha na raajaon ke kaan the na praja kee aavaaz thee iseelie - vo log jab roe the pattharon ke ho gae the 2 patthar ke devata, patthar ke pujaaree aur na koee ang chhoota aur na hee biraha bhang hota aur pattharon ke nagar mein, sooraj ka ghoda hinahinaata pattharon pe pair patakata baadalon ke haathee chinghaadate, pattharon ko pairon se ukhaadaten raaton ka andhera phunkaarata, pattharon ko kundalee maarata aur upar se raajaon ka hukm: dapha ek sau chauntaalis [dapha ek sau chauntaalis - law prohibiting gathairing of paioplai] 3 aur patthar saham ke baithate, jab dil kee guth mein to chhaatee mein harakat kee tarah, koee peela phool, patta yaan haree ghaas ka teela, ek patthar se aise phoote jaise kaanp ke ek rshi kee tapasya toote zindagee bujhatee aur jagatee thee aur yoon - pattharon ke nagar mein pattharon kee vansh badhatee thee 4 ek thee shila, aur ek tha patthar aur unaka us nagar mein sanyog likha tha aur unhonne mil kar ek varjit phal chakha tha main ab bhee baithoon to ek khyaal aata hai ki main agar hotee ek haree pattee unake badan kee saans, ek nanhee kopal to unakee chhaatee mujhe naseeb hotee 5 sooraj ka ghoda hinahinaata, baadalon ke haathee chinghaadate aur raaton ke saamp aur raajaon ke hukm phunkaarate par un kee aad mein main sthir baith jaatee aur kisee mamata kee daraar mein chhupee rahatee par vah shaayad chakamaak patthar the jo maile aasamaan tale, mailee dharatee pe ek pattharon kee sej par soe aur pattharon kee ragad se main aag see janmee, aag kee rut mein 6 badan se aag janmee, to patthar bhee kaampa - aur shila bhee kaampee phir badan kee aag unhonne jholee mein daalee aur dhune kee guttee aag ko chataee hansee to hansee, ek pavanon kee daee roee to roee, jisane kokh mein jamaee: "pattharon kee jholee mein aag na khele pattharon ke dukh hote pattharon jitane pattharon kee jeebh par paden pattharon ke chhaale ham dharatee ke havaale, too pavanon ke havaale" 7 phir ek sannaata - unhonne kuchh na kaha aankhen meenchane se pahale shaayad yah bhee na dekha ki ek janamatee aag ne ek lambee aah bharee aag ke honthon pe likhee ek lambee see aah aur aag kee haddiyon mein bhara dhuaan hee dhuaan yah bahatee havaen mujhe jahaan bhee le jaateen garm garm raakh mere badan se jhadateen aur roz meree umr ka jo bhee din chadata main use ang lagaatee, aur vah raakh ho jaata 8 main sochatee -- kya dhune kee lakeer-see maathe kee lakeer kaampatee hai? kya maan kee kokh se chita kee aag janamatee hai? main chita kee aag mein jalatee aur chita kee aag see jalatee par - neend ka andhera is tarah hota ki sapanon kee ek neelee lapat see nikalatee aur lagata - ki chita kee aag, aag ka apamaan hai kisee sohanee, sassee aur heer mein jo aag thee mujhe us aag kee pahachaan hai aur ek khyaal aata ki sirph maraghat kee aag, aag nahin hotee yah aag kee tauheen hai aur lagata - ki pattharon ke nagar mein jo "vaaris" ne aag lagaee thee yah meree aag bhee, usee kee jaan-nasheen hai aag, aag kee vaaris ["vaaris" - raifairainchai to waris shah poait vaaris - haiir jaan-nasheen - daischaindant] 9 par pattharon kee nagaree, koee aag na paale chhaatiyon ke chuhale, koee aag na jalaaye maathon kee bhattee par, koee aag na seke aur meree jeebh par uthe, us aag ke chhaale 10 vah pattharon ke nagar vaale kahate to kahate -is aag ko bujhao daalo, daalo, kisee naalee mein daalo do, do, naakhoon gale mein de do jao, le jao, ise nadee mein bahao ek pattharon ka nagar tha pattharon ke kinaare par kokh kee aag ka koee senk na baante 11 phir vahee hava - jisane jholee mein khilaaya aur jisane meree maan kee - maan kee, maan ko janama kaheen se daud kar aayee aur haathon mein kuchh akshar le aayee "inhen chhotee kaaleen rekhaen na jaanana yah rekhaon ke guchchhe, teree aag ke saathee dekh! aksharon mein hota, aag ka saahas aag ka saahas, hai aag se badakar" aur yah kahatee vah guzar gayee aage "teree aag kee umar in aksharon ko laage"